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फोटो स्त्रोत: lovemoney.com |
लेकिन मुझे पता है कि इस दुनिया में शायद ही कोई होगा जो उस तरफ की दुनिया की वैज्ञानिक तरक्की से वाकिफ ना हो। फिर इस देश के नेताओं को देखो, यहां के समाज के ठेकेदारों को देखो, जो सबसे भयानक वास्तविकताओं से अनजान हैं। उन लोगों को देखो जिनके लिए ये वैज्ञानिक तरक्की बेमानी है और जो आज भी 18वीं सदी के नियमों से खुद को बांधे हुए हैं और चाहते हैं कि समाज भी उन्हीं नियमों के अनुसार चले।
उस तरफ जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि कैसे प्राकृतिक चयन को लेकर जेनेटिक इंजीनियरिंग ने इंटीग्रल डिजाइन को पीछे छोड़ दिया है। आज मनुष्य में अपनी आवश्यकताओं और वरीयताओं के अनुसार प्रकृति की संरचना को बदलने की क्षमता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग और अन्य वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चलता है कि लोग कैसे उस तरह की संतान का जन्म सुनिश्चित कर रहे हैं जैसे गुण वे उनमें भविष्य में देखना चाहते हैं।
इस तरफ हम देखते हैं तो पाते हैं कि लोग, हमारे समाज के ठेकेदार और नेता इस वैज्ञानिक तरक्की की विपरीत दिशा में दौड़ लगाने की ठान कर बैठे हैं। यहां हम देखते हैं कि किसी निकिता तोमर को इसलिए मार डाला जाता है क्योंकि वह किसी सरफिरे के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। या फिर किसी खाप पंचायत के द्वारा फैसला सुनाया जाता है कि फलां गांव में लड़कियां जींस नही पहनेंगी और मोबाइल फोन का प्रयोग नही करेंगी। किसी राज्य का मुख्यमंत्री रिप्ड जींस को लेकर बयान देता है कि ये संस्कृति के खिलाफ है।
एक बार फिर दूसरी तरफ देखिए, आज आधुनिक मानव जैविक विज्ञान एक अतिमानवीय प्राणी बनाने के संघर्ष में लगा हुआ है, और इसके बेहद करीब पहुंच चुका है। एक हास्यास्पद सा खिलौना मंगल ग्रह तक की तस्वीरें दिखा रहा है। एक अजीब सी दिखने वाली वस्तु हजारों टन वजन उठाने में सक्षम है, जिस वजन को उठाने के बारे में कुछ सालों पहले तक कोई इंसान सोच भी नही सकता था।
उस तरफ की इस तरक्की को देखते हुए विचार कीजिए कि एक मानव कन्या भ्रूण किसी नाली में पड़ा हुआ है। किसी प्रेमी जोड़े की लाशें रेल पटरियों पर क्षत विक्षत हालत में बिखरी पड़ी है। किसी लड़की के साथ बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को अंजाम दिया गया है, क्योंकि उसने छोटे कपड़े पहने हुए थे और वह रात के समय में अपने दोस्त के साथ घूम रही थी।
एक पुरानी चीनी कहावत है कि प्रत्येक शहर में एक से अधिक शहर बसते हैं। यह 100 प्रतिशत सच है। लेकिन जरा तुलना कीजिए कि हमारे यहां प्रत्येक शहर में किस तरह के शहर बसते हैं और उनके यहां किस तरह के? एक व्यापक संदर्भ में पूरी दुनिया की बात करें तो सोचें कि उस तरफ की दुनिया में हम और हमारे जैसे समाज की क्या भूमिका होगी? हमारे जैसे समाज की क्या स्थिति होगी? हमारे जैसे समाज को कौन स्वीकार करेगा?
उस तरफ देखिए, एक इतिहास बनाया जा रहा है। हमारी तरफ देखिए एक इतिहास को मिटाया जा रहा है। उस तरफ देखिए वैज्ञानिक तरक्की के आधार पर मंगल और टाइटन पर मानव बस्तियां बसाने की योजना बनाई जा रही है। इस तरफ देखिए बेटे को उसकी पसंद की लड़की से शादी करने से रोकने की योजना बनाई जा रही है।
विज्ञान की गति ने आज समय का अर्थ बदल दिया है। अब एक वर्ष में हजारों वर्षों की दूरी तय की जा रही है। लेकिन हमारे समाज ने जैसे तय कर रखा है कि हमे यहीं खूंटा गाड़ के बंधे रहना है और साथ में बांधे रखना है भेड़ों को। वो भेड़ें जो इन महान नेताओं के पीछे पीछे चल रही हैं। हमारे नेताओं को समझ नही आ रहा है कि उस तरफ वे अगले सौ वर्षों में हजारों नही बल्कि लाखों वर्षों की यात्रा कर चुके होंगे।
फिर हम कहां और कैसे होंगे?
किसी महान वैज्ञानिक ने बताया था कि जीवन के संघर्ष में वही जीवित रहेगा जो प्रकृति के विरुद्ध सबसे शक्तिशाली साबित होगा। आज की दुनिया एक जंगल में बदल चुकी है और जंगल में उसी का राज चलता है जो सबसे सामर्थ्यवान होता है।
तो फिर आप तय कीजिए कि कौन ज्यादा शक्तिशाली है, वो जो आज भी अपने हाथों से 100-200 किलो वजन उठा रहा है या वो जिसने वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर क्रेन का निर्माण किया और हजारों टन वजन उठा रहा है? वो समाज ज्यादा शक्तिशाली है जो जेनेटिक इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहा है, या वो जो किसी कन्या का इस दुनिया में आना ही स्वीकार नही कर पाता? वो ज्यादा शक्तिशाली है जो मंगल और टाइटन पर बस्तियां बसाने की योजना बना रहे हैं या फिर वो जो किसी प्रेमी जोड़े के मिलन को किसी भी तरह से रोकने की योजना बना रहे हैं?
खैर! ये दुनिया क्या है और वो दुनिया क्या है…
एक तरफ ज्ञान, अनुसंधान और रचनात्मकता का सागर।
दूसरी तरफ अज्ञानता की शक्ति का स्त्रोत।
एक तरफ ज्ञान की खोई हुई विरासत की सफल खोज जारी है।
दूसरी तरफ गधे और गधों के झुंड दौड़ लगा रहे हैं।
एक तरफ ग्रह और ग्रहों से परे विजय।
दूसरी तरफ सामाजिक गंदगी का ढेर।